दो रुबाई

 अंधेरा ही है जागीर-ओ-वसीयत है
अंधेरे से ही इंसा की बनी नीयत है
अंधेरे ने उजाले को नही देखा कभी
बेअसर रह गया इंसान, ये हक़ीक़त है
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बंद आँखों से टटोलो तो खोज बाकी है
बंद आँखों से पिलाये अजबसा साक़ी है?
ये तजुर्बे ......जो आतें हैं निकल जाते हैं
एक भी ऐसा नही..जिसपे नज़र जाती है
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- अरुण

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