संस्कारों की मिर्ची

संस्कारों की मिर्ची
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परिवार और समाज आदमी का है
मित्र भी और शत्रु भी
आदमी को समाज के अनुकूल बनाता है
इस लिहाज़ से है...मित्र
पर सच जानने के मार्ग में रुकावट बनता है
इस हिसाब से है.... शत्रु
बचपन में ही संस्कारों की मिर्च खिला दी जाती है
मिर्च से जिसका मुँह जला हो वह तो पानी ही चाहेगा
मीठा छोड दूसरे किसी स्वाद की कल्पना भी नही कर सकता
सच वही जान सकेगा जिसके चुनाओं पर किसी का कोई भी बंधन न हो
संस्कार आदमी को बाँधे रखते हैं, चुनाव की आज़ादी से वंचित रखते हैं
- अरुण

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