ज़िंदगी
ज़िंदगी
------------
ज़िंदगी छोटी.... बहुत छोटी..... बहुत छोटी है
ना समझ पाए ज़ेहन....जिसकी पकड मोटी है
ओंकार कहो..अल्लाह कहो... या गाॅड कहो..... जो नाम कहो
हर नाम की चौडाई..... बहुत होती है
ना समझ पाए ज़ेहन....जिसकी पकड मोटी है
चिंटी के कदम... रफ्तारे अहं....धड़कन की रिदम .... हो कोई नटन
भीतर पल के... इक उम्रे रवां होती है
ना समझ पाए ज़ेहन....जिसकी पकड मोटी है
सूरज की किरन....सामाजिक मन....ख़ामोश श्वसन....हो कोई हरम
हर पेहरन में.....इक रूह बसी होती है
ना समझ पाए ज़ेहन....जिसकी पकड मोटी है
ज़िंदगी छोटी.... बहुत छोटी..... बहुत छोटी है
ना समझ पाए ज़ेहन....जिसकी पकड मोटी है
- अरुण
------------
ज़िंदगी छोटी.... बहुत छोटी..... बहुत छोटी है
ना समझ पाए ज़ेहन....जिसकी पकड मोटी है
ओंकार कहो..अल्लाह कहो... या गाॅड कहो..... जो नाम कहो
हर नाम की चौडाई..... बहुत होती है
ना समझ पाए ज़ेहन....जिसकी पकड मोटी है
चिंटी के कदम... रफ्तारे अहं....धड़कन की रिदम .... हो कोई नटन
भीतर पल के... इक उम्रे रवां होती है
ना समझ पाए ज़ेहन....जिसकी पकड मोटी है
सूरज की किरन....सामाजिक मन....ख़ामोश श्वसन....हो कोई हरम
हर पेहरन में.....इक रूह बसी होती है
ना समझ पाए ज़ेहन....जिसकी पकड मोटी है
ज़िंदगी छोटी.... बहुत छोटी..... बहुत छोटी है
ना समझ पाए ज़ेहन....जिसकी पकड मोटी है
- अरुण
Comments