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Showing posts from January, 2012

आनंद और रंजन

सृष्टि के सोंदर्य का प्रत्यक्ष दर्शन दृदय को आनंद से भर देता है परन्तु प्रत्यक्ष दर्शन की स्मृति या कल्पना या विवेचन केवल मन को रंजित करता है आनंद नही देता - अरुण

दुःख और चिंता

जब मनुष्य का ध्यान भविष्य और बीती घटनाओं से जुड़े   विचारों में उलझ जाता है,        मनुष्य का मनोवैज्ञानिक धरातल दुःख और चिंता से कम्पित हो उठता है - अरुण  

चली आओ ...

(पुराने फिल्मी गीतों की याद दिलाने के लिए) सुलाने धडकनों को तुम चली आओ समाने मेरी बाँहों में चली आओ अभी अरमान प्यासे हैं अभी ये रात फीकी है तुम्हे नजदीक लाने की जिगर में आस तीखी है सजाने जिंदगी को तुम चली आओ समाने मेरी बाँहों में चली आओ ये दिल का साज चुप चुप है अभी मेहेफिल भी सुनी है ये सजे इश्क सुनने की तमन्ना आज दूनी है बजाने तार दिल का तुम चली आओ समाने मेरी बाँहों में चली आओ घटाएँ आज थमके हैं नज़ारे नही अभी गुम हैं चली आओ चली आओ ये धीरज भी बहुत कम है जगाने सब नज़ारे तुम चली आओ सामने मेरी बाँहों में चली आओ - अरुण

नींद टूटी तो....

नींद टूटी तो स्वप्न-कांच महल टूट गये हुआ पानी नसीब प्यासे अधर रूठ गये होश में आने का है सिलसिला घडी हर घडी इक घडी पूरे भरे दूसरी में फूट गये वो हंसी झोंके थे नैया को बहाने वाले थे हकीकत के बवंडर जो उन्हें लूट गये बाद संयोग के चल आये किसी उपवन में हम इधर आये मगर नैन उधर छूट गये हर बनी आस तो सपने का ही एक रूप है दोस्त जागकर देखनेवालों के साँस टूट गये -अरुण   

मंजिल वही है

वक्त की हर बूंद जिसकी जिंदगी हो जिस जगह भी हो खड़ा, मंजिल वही है - अरुण

चुनाव के इस माहोल में

सभी राजनेता या राजनैतिक पार्टियां एक दूसरे पर कीचड़ उछाल रही हैं.अपनी अच्छाइयों का बखान कर रही हैं.आश्वासनों से वोटरों का मन लुभाने में जुटी हैं.अपने किये पाप की गंभीरता कम करने के लिए दूसरों के पापों का पहाडा पढ़ रही हैं.जनता के नजर में अपनी छबि बनाने की होड में सभी पक्ष मशगूल हैं. चुंकि जनता उनकी ग्राहक है. उनके जुबान पर जनता की भलाई की बातें तो मन में वोट बटोरने की मन्शा दबी है. सभी पार्टियां और उनके नेता भयभीत हैं इस बात से कि कहीं जनता, कम से कम इस वक्त तो. नाराज न हो जाए. अभी तक एक भी नेता ऐसा नही देखा जो कहे कि सारा भ्रष्टाचार तो जनता में ही व्याप्त है और हम तो उसी जनता के एक प्रतिनिधि मात्र हैं. ऐसी सच्ची बात कहने का साहस वही कर सकते हैं जिन्हें वोट की या भीड़ जुटाने की दरकार नही. - अरुण

स्मरण

‘ स्मरण ’ शब्द के द्वयार्थ को समझ लेना होगा स्मरण यानी होश और स्मरण यानी स्मृति जो होश में है – जागृत है जो स्मृति में अटका - सोया हुआ है भगवान का स्मरण करना यानी भगवान या सत्य के प्रति होश रखते हुए जीना. जिन्होंने ‘ स्मरण ’ को   स्मृति समझा वे सब अपने समझे हुए भगवान की स्मृति में बेहोश हैं -अरुण    

संगीत और जीवन-गीत में बहुत समानता है

शास्त्रीय संगीत में हरेक थाट के स्वरों में से कुछ को चुनकर उनके उलट फेरों से रागों का अविष्कार किया गया है और अब उनमें से हरेक राग के आधार पर अलग अलग भाव अभिव्यक्तियाँ वाले गीत बनाये दिखते हैं ................ शुद्ध चेतना की उर्जा के अलग अलग स्वभाव हैं (थाट) अनुभूति के माध्यम से विषयों की निर्मिति हुई है एक ही विषय को अलग अलग भावनाओं से अभिव्यक्त किया जाता है संगीत और जीवन-गीत में बहुत समानता है ........................................... अरुण   

उस दिन का इंतजार है

मन लिखता तो बहुत है अपने बाबत पर हर बार शरीर को ही लिखते देखा है ग़मों का बोझ कितना भी हो मन पर हर बार शरीर को ही थकते देखा है कौन लिखता है, कौन सहता है ग़मों का बोझ? ऐसे सवालात मन ही उठाता है और मन ही देता है इसका उत्तर   जिस दिन शरीर इस बारे में कुछ कह सके उस दिन का इंतजार है ............................................... अरुण  

स्वेच्छा का माहोल और सक्ती का संतुलन

जड़ों को और तनों को, दोनों को सुरक्षित वातावरण और पोषण मिले तभी पेड पौधे खुशीसे बहरते,लहराते हैं व्यक्ति और उसके वातावरण दोनों में अनुकूल बदलाव जरुरी है और यह बदलाव स्वैच्छिक हो. और स्वेच्छा का माहोल बनाने के लिए   जितनी सक्ति (आग्रह) चाहिए उतनी ही हो, न अधिक और न कम   .............................................. अरुण

प्रतिनिधि से दिल लगाते हैं

भगवान में नही, उसके ख्याल में ही रम जाते हैं निधी से नही, प्रतिनिधि से दिल लगाते हैं ...................................................... अरुण  

सारा अस्तित्व ज्ञानशून्य हैं

सामने उगा सूर्य सच है बदन को छूती ये मंद हवा सच है पर सूर्य को सूर्य कह कर पुकारो, कहीं कोई प्रतिक्रिया न होगी हवा की कितनी भी तारीफ या निंदा करो उस पर कोई असर न होगा....... सारा अस्तित्व ज्ञानशून्य हैं   ......................................... अरुण

पागल लगते हैं

यहाँ झूठ ही सच का किरदार निभाता है, अँधेरे पर सफेदी चढाकर फिर इसी सफेदी की वजह से दुनिया उजली दिखती है और ऐसे ही बनावटी उजाले में चल रहा है दुनिया का सारा कारोबार इस कारोबार में, जो निपुण है अच्छे लगते है, जो अकुशल है कच्चे लगते है और जो इस कारोबार में नही हैं पागल लगते हैं ........................................ अरुण       

देखना

देखना हर चीज को बनते हुए देखना हर वक्त को ढलते हुए देखना हर वाकिए का तार तार देखने का वाकिअः घटते हुए     देखने को देखता है जब समां उस समां में ही समाकर देख लो इस तरह से देखना ही जिंदगी घर से बाहर आ, निकलकर देख लो .......................................... अरुण 

मन से मुक्त

मन में डूबा चित्त इस छोर पर घबराए तो उस छोर पे जाए वहाँ पर समाधान न हो तो इधर फिर लौट आए इस रोग से उस रोग पर इस मूर्छा से उस मूर्छा तक दौड लगाते चित्त से ही हम जीते हैं जो चित्त मन से मुक्त हुआ वह न सुखी है और न ही दुखी हर अवस्था में आनंद से भरा है ............................................. अरुण    

सही ख़ामोशी

ख़ामोशी सही हो तो तूफान उठे जाते हैं जो तूफान खामोश हैं दिल मे ख़ामोशी से घबराते हैं ....................................... अरुण

धरम अनुशासन

भटकन से बचाता है धरम अनुशासन मगर सच से कहीं दूर भगा जाता है जिसकी आँखों में पट्टियाँ न बंधी न भटकता है न भगा जाता है   ........................................... अरुण

अब भी सपने आते क्यों हैं ?

पहले तो किया करते थे सपनो पे भरोसा दिल से हर बोझ उतर जाता था जब से समझी है सपनो की हकीकत दिल का हर बोझ बढ़ा जाता है फिर भी ये बात समझ में आती नही कि अब भी सपने आते क्यों हैं ? ............................................. अरुण

अपने माजी से ही चिपके हुए, लिपटे हुए

मेरा माजी ही- मेरा वजूद है शायद मेरे जाने के बाद कुछ न बचेगा शायद जो भी है - अब है यहाँ, जिन्दा है कल की बस याद यहाँ जिन्दा है जिंदगी साँस और एहसास का मिलन हर साँस में एहसास यहाँ जिन्दा है साँसभर है जिंदगानी सफर इतना लंबा लगे तो कैसे लगे सिर्फ लम्हे का फासला है मगर वक्ते एहसासे सफर लंबा लगे जिंदगी छोटी, बहुत छोटी, बहुत छोटी मगर छोटे टुकड़ों से उभर आता एहसासे सफर इसी एहसास में डूबी तमाम जिंदगी अपने माजी से ही चिपके हुए, लिपटे हुए ...................................................... अरुण

जिंदगी लेनी तो देनी भी है

इंसान बस अपनी ही सोचता है अपने सुखदुख के लिए खुदा को कोसता है आंधियां चल पड़ें तो कहे बचाओ हमें रोग पकड़ ले तो कहे छुडाओ हमें भूल जाता है के आंधियां उसकी ही हैं हर रोग को जिंदगी उसने ही दी है यहाँ तुम ही अकेले नही जिंदगी के हक़दार कुदरत पे जी रहे कई और भी हैं बेहतर यही कि खुदा से कुछ न कहो अपना सोचो और सभी का ख्याल करो जिंदगी सिर्फ जीने की कहानी नही जीने और जिलाने की रवानी है अपना ही सोचने वाले, ख्याल रहे जिंदगी लेनी तो देनी भी है ............................................................. अरुण

समय

समय की धार पे बहता है जिंदगी का जहाज कई अरमान गम समेटे हुए कभी सुबह तो कभी अंधकारमय रातें सभी दिशा से साँस लेते हुए समय की धार को कोई नही बदल पाए आएँ जाएँ भले ही कितने जहाज सुबह हो रात हो कैसा भी हो समां मंजर समय का सबसे एक जैसा मिजाज .................................................... अरुण

सारे मेरे रिश्ते, मेरी दुनिया है

सारे मेरे रिश्ते, मेरी दुनिया है मेरी दुनिया ही - ‘ मै ’ हूँ अगर न जानते हुए इस ‘ मै ’ को कुछ भी करूँ तो वह कुछ न करने के बराबर ही है .............................................. अरुण

खुशी से दूर कहीं ......

कभी मंदिर कभी पूजा, स्वयं भुलाए हुए खुशी से दूर कहीं हम खुशी को ढूंढते है ........................................................ अरुण

अपना लगता है

जेब में धरा हुआ, अपना लगता है पर जिस धरा पे खड़ा हूँ, वह अपनी नही लगती .................................................. अरुण

एहसास

हर बात के एहसास को एहसास होता है नही है पास कुछ भी मगर वह पास होता है ......................................... अरुण