स्मरण
‘स्मरण’ शब्द के द्वयार्थ को समझ लेना
होगा
स्मरण यानी होश और स्मरण यानी स्मृति
जो होश में है –
जागृत है
जो स्मृति में अटका - सोया हुआ है
भगवान का स्मरण करना
यानी भगवान या सत्य के प्रति होश रखते हुए जीना.
जिन्होंने ‘स्मरण’ को स्मृति समझा वे सब
अपने समझे हुए भगवान की स्मृति में बेहोश हैं
-अरुण
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