उस दिन का इंतजार है


मन लिखता तो बहुत है अपने बाबत
पर हर बार शरीर को ही लिखते देखा है
ग़मों का बोझ कितना भी हो मन पर
हर बार शरीर को ही थकते देखा है
कौन लिखता है, कौन सहता है ग़मों का बोझ?
ऐसे सवालात मन ही उठाता है
और मन ही देता है इसका उत्तर 
जिस दिन शरीर इस बारे में कुछ कह सके
उस दिन का इंतजार है
............................................... अरुण  

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