अपने माजी से ही चिपके हुए, लिपटे हुए

मेरा माजी ही- मेरा वजूद है शायद

मेरे जाने के बाद कुछ न बचेगा शायद

जो भी है - अब है यहाँ, जिन्दा है

कल की बस याद यहाँ जिन्दा है

जिंदगी साँस और एहसास का मिलन

हर साँस में एहसास यहाँ जिन्दा है

साँसभर है जिंदगानी सफर

इतना लंबा लगे तो कैसे लगे

सिर्फ लम्हे का फासला है मगर

वक्ते एहसासे सफर लंबा लगे

जिंदगी छोटी, बहुत छोटी, बहुत छोटी मगर

छोटे टुकड़ों से उभर आता एहसासे सफर

इसी एहसास में डूबी तमाम जिंदगी

अपने माजी से ही चिपके हुए, लिपटे हुए

...................................................... अरुण

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