मन से मुक्त
मन में डूबा चित्त
इस छोर पर घबराए
तो उस छोर पे जाए
वहाँ पर समाधान न हो
तो इधर फिर लौट आए
इस रोग से उस रोग पर
इस मूर्छा से उस मूर्छा तक दौड लगाते
चित्त से ही हम जीते हैं
जो चित्त मन से मुक्त हुआ वह
न सुखी है और न ही दुखी
हर अवस्था में आनंद से भरा है
............................................. अरुण
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