अभिन्त्व (Individuality)
अस्त्तित्व सिर्फ होता है,
या यूँ कहें कि
सिर्फ होने को ही अस्तित्व कहते हैं
अस्तित्व न जानता है, न जनता है
न मरता या मारता है न बोलता है
न सुनता या सुनाता है, उसकी न कोई पहचान है
और न ही वह कुछ पहचानता है
आदमी भी इसी अस्तित्व का अभिन्न हिस्सा है
जिस क्षण से वह अपनी पहचान बनाता है
उसे केवल अपनी पहचान का ही स्मरण रहता है
अपनी पहचान का ही अस्तित्व उसे पकडे रहता है
अस्तित्व का पूर्ण विस्मरण होने से वह अपना
अभिन्त्व (individuality) भूल बैठता है
.......................................................... अरुण
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