चुनाव के इस माहोल में


सभी राजनेता या राजनैतिक पार्टियां एक दूसरे पर कीचड़ उछाल रही हैं.अपनी अच्छाइयों का बखान कर रही हैं.आश्वासनों से वोटरों का मन लुभाने में जुटी हैं.अपने किये पाप की गंभीरता कम करने के लिए दूसरों के पापों का पहाडा पढ़ रही हैं.जनता के नजर में अपनी छबि बनाने की होड में सभी पक्ष मशगूल हैं. चुंकि जनता उनकी ग्राहक है. उनके जुबान पर जनता की भलाई की बातें तो मन में वोट बटोरने की मन्शा दबी है. सभी पार्टियां और उनके नेता भयभीत हैं इस बात से कि कहीं जनता, कम से कम इस वक्त तो. नाराज न हो जाए.
अभी तक एक भी नेता ऐसा नही देखा जो कहे कि सारा भ्रष्टाचार तो जनता में ही व्याप्त है और हम तो उसी जनता के एक प्रतिनिधि मात्र हैं. ऐसी सच्ची बात कहने का साहस वही कर सकते हैं जिन्हें वोट की या भीड़ जुटाने की दरकार नही.
- अरुण

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