सौ रूपये की एक पूरी बंधी नोट


जिस तरह
सौ रूपये की एक पूरी बंधी नोट में ही
सौ रुपये मूल्य की
क्रयशक्ति समायी हुई है,
नोट का कोई भी छोटा बड़ा टुकड़ा
शून्य-कीमत का है,
ठीक ऐसे ही
पूरी की पूरी चेतना या स्मृति ही
बुद्धत्व (Intelligence) को जगाती है.
परन्तु चेतना के टुकड़े
(टुकड़ों की आपसी
प्रक्रियाएँ) नाना प्रकारकी पीडाएं
उभारने वाले संघर्ष को जन्म देते हैं
-अरुण 

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