अपने मूल स्वरूप का सतत स्मरण
नाटक या फ़िल्म में
जिस प्रकार अभिनेता अपने
मूल व्यक्तित्व और पहिचान को,
एक क्षण के लिए भी
न भुलाए हुए, अपनी भूमिका को
सही सही ढंग से निभाता है,
उसी प्रकार अपने मूल स्वरूप को
न भूलते हुए, इन संसारी भूमिकाओं को
जो आदमी ठीक ठीक निभाता होगा,
वह कितना मुक्त और आनंदी होगा,
यह सोचकर ही
मै गदगद हो जाता हूँ
-अरुण
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