‘कल’ और ‘कल’ की कलकलाहट


दोनों कल
बीता-कल और आनेवाला-कल, जिंदगी को
उसके आज से भगा ले जाते हैं,
वहाँ ठहरने ही नही देते.
जो आज और अब पर ठहरा
उसे ही जिंदगी के दर्शन हुए
-अरुण 

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