जन्म-मरण, आरम्भ–अंत
जन्म-मरण, आरम्भ–अंत जैसी
संकल्पनाएँ कामचलाऊ हैं
क्योंकि अस्तित्व में
न कहीं भी शुरुवात है
और न कहीं भी अंत.
मस्तिष्क जहाँ से देखना
या जानना शुरू करता है
मस्तिष्क के लिए वही शुरुवात है,
और यही बात अंत के बारे में भी.
‘जन्म-मरण’ भी आदमी की समझ के अनुसार
निर्धारित होते हैं, जबकि
वास्तविकता में वे
होते ही नही
-अरुण
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