किसी जागे हुए की अभिव्यक्ति


अँधेरे में रहकर अँधेरे से झगडना
काम न आया,
क्योंकि पता न था
कि वह अँधेरा नही,
मेरी ही परछाई थी
पीछे खड़े सूर्य पर ध्यान ही न गया
क्योंकि
अँधेरा परछाई का ध्यान को निगल चुका था.
इसतरह तब
अँधेरा भी था और जिसपर
मेरा ध्यान नही वह उजाला भी
पर अब
अँधेरा न तो अँधेरा है और
उजाला न तो उजाला ही
........ कोई भेद नही
-अरुण  

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