मनाधीन बनाम स्वाधीन



मनाधीन आदमी
मंदिर में बैठे बैठे
बाजार में टहल रहा है,
घर में खाना खाते समय भी
उसका चित्त कहीं दूसरी जगह
किसीसे वाद-विवाद में उलझा है  

स्वाधीन वह है जो
जहाँ है और जो कुछ कर रहा है
उसे वह पूरे मन से कर रहा है
उसका चित्त उसकी वास्तविक स्थिति और
कृति में पूरी तरह उपस्थित है
-अरुण  

Comments

Popular posts from this blog

मै तो तनहा ही रहा ...

यूँ ही बाँहों में सम्हालो के

पुस्तकों में दबे मजबूर शब्द