जहाँ जागो वहाँ सबेरा



जगह बदलने से
जागरण की गुणवत्ता ही नहीं
जागरण की आभा ही बदल जाती है
अंदर-बाहर के संपर्क और
फलतः रिश्ते बदल जाते है,
बदले रिश्तों के सम्मुख स्व-प्रतिमा बदल जाती है.
और फिर आदमी की सोच समझ और
रंग-ढंग (रव्वैया ) बदल जाता है
अलग ढंग से कहें तो
एक नए समय का नया आदमी
जीवित हो उठता है   
-अरुण   

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