सारी सृष्टि निष्कर्मी



न सूर्य कर्म करता है
और न ही सागर,
न जंगल जमीन और न ही
वह सबकुछ जो सृष्टि का
अभिन्न अंग है.
मनुष्य भी सृष्टि का ऐसा ही
अभिन्न अंग है
और इसकारण वह भी 
कोई कर्म नहीं करता,
हाँ, कर्म करता है उसका अहंकार
जो उसकी नहीं बल्कि
उसके भ्रम की एक अभिन्न छाया है
-अरुण

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