परम बनाम संकोच
परम आकाश में व्याप्त
जागरूकता
कण कण की
गहराई में प्रकाश की तरह
उपस्थित है
परन्तु किसी भी संकुचित चेतना
से उलझा मस्तिष्क
परम आकाश की केवल
कल्पना कर सकता है
वहां उपस्थित नहीं हो सकता
तात्पर्य यह कि
परम यानि सत्य,
संकोच यानि असत्य
या भ्रम/माया से गुजरकर
उसे अनुभव कर सकता है
परन्तु असत्य
सत्य को समझ नही सकता
-अरुण
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