वस्तु-जगत, प्रतिजगत और दृदय



वस्तुजगत को पांच इन्द्रियां
छूती हैं, उनसे निकली संवेदनाओं को
भीतर ले जाती हैं जहाँ उन संवेदनाओं की
सामग्री का उपयोग कर प्रतिजगत निर्मित किया जाता है
इसी प्रतिजगत के विश्लेषण-संश्लेषण के सहारे
मनुष्य अपने बाहरी जगत से निपटता है,
बाहर से भीतर और भीतर से बाहर की इस
परस्पर यात्रा में उलझी चेत-उर्जा
दृदय से इस व्यापार को निहारते ही
मुक्त हो जाती है
-अरुण  

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