वे आस्तिक नहीं भगोड़े हैं



जीवन के हर प्रसंग के लिए
जो स्वयं को जबाबदार समझकर
उसके  साथ निपटता है वह
हमेशा आजाद और समाधानी है.
ऐसे में, प्रसंग चाहे उसके लिए
आनंददायी हो या कष्टदायी
वह दूसरे को दोषी नहीं मानता
और न ही दूसरे की दया पर जीता है
अपने सुखों और दुखो को वह
परमात्मा (जो उसके हाँथ या वश में नहीं होता)
पर पूरी तरह छोड़ देता है
और जो मिले उसे बड़े समाधान के साथ
स्वीकारता है
अपनी जबाबदारी से भागते हुए जो
सारा दोष या श्रेय दूसरों को देते हैं
वे आस्तिक नहीं भगोड़े हैं
-अरुण  

Comments

Popular posts from this blog

मै तो तनहा ही रहा ...

पुस्तकों में दबे मजबूर शब्द

यूँ ही बाँहों में सम्हालो के