‘खुद’ नही जरिया मगर मंजिल है खुद
चाँद
नयनो में नहीं उतरा अभी
बस
अभी प्रतिबिम्ब से ही दिल भरा
कल
तलक जो भी किया वह क्या किया
बिम्ब
में ही कोशिशों को भर दिया
कोशिशों
का ख्याल ही जो व्यर्थ था
जबतलक
जरिया बना था मै ही खुद
अब
कहीं ये समझ आया है मुझे
‘खुद’
नही जरिया मगर मंजिल है खुद
-अरुण
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