चेतना का कोई विशेष गुण नहीं
चेतना
का कोई भी
रूप-गंध-स्वाद-ध्वनी-स्पर्श
नहीं,
वह
जहाँ भी जागती है वैसे ही
बनी
हुई प्रतीत (भासित) होती है.
मन
में मन जैसी, स्मृति में स्मरत जैसी,
बुद्धि
में निष्कर्ष या विवेक जैसी ढल जाती है
जब
स्व (मूल-स्वरूप) में लौट आती है
तब
केवल ध्यानमग्न होती है
-
अरुण
Comments