मस्तिष्क है काया तो मन है छाया



मस्तिष्क से उभरता है
मन का एहसास
यह एहसास ही मन को चलाता है-
एक लहर दूसरी को चलाती है,
ठीक उसी तरह.
मन को मस्तिष्क का न कोई एहसास है और
न ही उसपर कोई नियंत्रण 
जबकि मस्तिष्क प्रक्रिया से ही
मन छलक कर एहसास के रूप में
विचरता रहता है
-अरुण

Comments

Popular posts from this blog

मै तो तनहा ही रहा ...

पुस्तकों में दबे मजबूर शब्द

यूँ ही बाँहों में सम्हालो के