जिंदगी बंद डिब्बे में पड़ी है

जिंदगी बंद डिब्बे में पड़ी है

मेरी कामचलाऊ सोच ने डिब्बे की

हर परत गढ़ी है

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पानी ही मछली का जीवन है

पानी ही हैं उसके प्राण

ठीक इसी तरह

संसार में जीता मै

संसार बिना जी नही पाता

अस्तित्व जिसका मै अभिन्न हिस्सा हूँ

उससे मै,

चेतना के तल पर जुड ही नही पाता

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मेरी चेतना सांसारिक प्रपंचों एवं

प्रतीकों में सिमट कर रह गयी है

इस प्रापंचिक दीवाल के बाहर भी

एक विशाल अपरिमित संसार या

युनिव्हर्स है, इसका मुझे

जीवंत अवधान हो ही नही पाता

...................................... अरुण

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