स्पर्श मायावी, स्पर्श यथार्थ

सामने उड़ रहा है

पानी का एक

ऊँचा सा चादरनुमा फौवारा

जिसपर प्रक्षेपित है एक दृश्य

विशाल सुलगती-दहकती आग का

देखनेवाले के अनुभव में उतर रही है

उस आग की त्रासदी

देखने वाला त्रस्त है, विवंचित है

भयभीत है उस आग के मायावी स्पर्श से

वह भूल बैठा है

फौवारे के शीतल जल कणों का स्पर्श

.................................................. अरुण

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