भूत और भविष्य की निर्बोझ अनुभूति

हर जीवंत साँस के साथ साथ,

मृत-भूत और काल्पनिक भविष्य

का बोझ ढोते आदमी के चित्तमें,

केवल भूत और कल्पना का स्मरण है,

जीवंत साँस के प्रति ऐसा आदमी गाफिल है

............

सांस के जीवंत अस्तित्व के प्रति

जो जागा हुआ है,

ऐसा आदमी जीवंत है दोनों ही जगह,

साँस पर और अपने भूत और भविष्य पर भी

फर्क इतना ही कि अब

भूत और भविष्य उसके लिए

एक निर्बोझ अनुभूति के आलावा कुछ नही हैं

........................................... अरुण

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