तात्पर्य गीता अध्याय ४
मानुष तो इक यन्त्र बस, यांत्रिक कंही कुई और /
जिसकी हो यह भावना, वह ईश्वर के ठौर //
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जनम मरण इक कल्पना, लहर उठे गिर जाय /
भेद तोडता चित्त को, टूटा सागर हाय //
................................................ अरुण
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