होश-बेहोशी की मिलीजुली अवस्था को प्राप्त गति से विचार चलने लगते हैं, केवल होश ही होश हो तो निर्विचार.... और केवल (या प्रमुखतःसे) बेहोशी हो तो अविचार का जन्म होता है सत्यावस्थी निर्विचार का धनी हैं और तामसी अविचार का शिकार, विचार करते रहना रजोगुणी की प्रवृत्ति है -अरुण
देखना था पूरा पूरा आकाश पर देखे उसके टुकड़े टुकड़े. टुकड़ों पर दुकड़े रचकर जो बनी रचना उसीको मैंने आकाश समझा है टुकड़ों से बने आकाश में अब उभरा है काल और अवकाश -अरुण
सत्य शोध और वस्तु-शोध यानि तत्व-दर्शन और विज्ञान, दोनों के लिए ही वस्तु-निष्ठ निरिक्षण जरूरी है फर्क इतना ही है कि विज्ञान में निरिक्षण , निरीक्षक के द्वारा किया जाता है जबकि तत्व दर्शन में यह स्वयं तत्व के द्वारा ही घटता है -अरुण