विचार-गति



होश-बेहोशी की मिलीजुली
अवस्था को प्राप्त गति से
विचार चलने लगते हैं,
केवल होश ही होश हो तो
निर्विचार.... और केवल (या प्रमुखतःसे)
बेहोशी हो तो अविचार का जन्म होता है
सत्यावस्थी निर्विचार का धनी हैं और
तामसी अविचार का शिकार,
विचार करते रहना
रजोगुणी की प्रवृत्ति है
-अरुण  

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