अवधान-जन्य आँखे
अस्तित्त्व सदा जीवंत है अपनी
मूलअवस्था में,
कोई भी समय सीमा उसे
बना या बिगाड नही पाती.
हाँ, यदि कोई वस्तु बनती बिगड़ती
रहती है तो वह है
अस्तित्त्व का रूप और आकार.
इस बनते-बिगड़ते रूप और आकार को
आदमी की मर्यादित क्षमता वाली आँखे
देख नही पाती और इसीलिए उसे
अवधान-जन्य आँखों से देखना होगा
-अरुण
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