अस्तित्त्व और कल्पना



आदमी अस्तित्वतः जहाँ है
वहाँ से उसका कल्पनागत प्रस्थान ही
उसके सारे दुखों का कारण है.
हजारों लाखों में से जो भी एक
अपनी अस्तित्त्व-स्थिति में लौट आया
वह संसार से मुक्त हो गया
-अरुण

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