सृष्टि की तरल आत्मा


सृष्टि की तरल आत्मा
जब व्यक्ति से गुजरकर
अभिव्यक्त होती है
तब वह व्यक्ति का व्यक्तित्व रुपी
जड़ स्व (Self या अहंकार)
बन जाती है जिसमें से
व्यक्ति के
गत अनुभव और स्मृति झांकती है
-अरुण     

Comments

Popular posts from this blog

मै तो तनहा ही रहा ...

पुस्तकों में दबे मजबूर शब्द

यूँ ही बाँहों में सम्हालो के