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Showing posts from July, 2013

सब बात बदल जाएगी

आसमान की तरफ नजर उठी नीलापन, उड़ते बादल, बीच बीच में झांकती धूप ... यह सुहाना नजारा भीतर छू गया, पर यदि इस ‘देखने’ में विचारों का व्यवधान आ जाए, नज़ारे को देखने की जगह उसे पढ़ना, विचारना चल पड़े तो सब बात बदल जाएगी -अरुण  

खुद ही मर्ज. मरीज और इलाज भी

मन में बड़ी भूमिका निभानेवाला अहंकार उस जापानी खिलौने (बबुआ) जैसा है जिसे कहीं से फेंको या मारो वह फिर अकड़कर जमीनपर सीधा का सीधा खड़ा हो जाता है क्योंकि अहंकार मर्ज है और डाकटर भी, अहंकार की पीड़ा सहने वाला मरीज भी खुद अहंकार ही है -अरुण      

क्षितिज तो अनूठा मिलन नभ धरा का

धरा सत्य आकाश एक कल्पना सी क्षितिज तो अनूठा मिलन नभ धरा का ** यहाँ साँस जीना मगर आस माया मनु से उसीकी लिपटती है छाया खुले नैन जिनमे सपन हैं प्रवासी धरा सत्य .......... ** उठो पंख लेकर धरो ध्यान धारा क्षितिज से भ्रमों पर भ्रमण हो तुम्हारा धरो नित्य अवधान जो साधना सी ** धरा सत्य आकाश एक कल्पना सी क्षितिज तो अनूठा मिलन नभ धरा का -अरुण

बड़ी क्या, छोटी भी घटना याद रह सकती है

जीवन की किसी भी अति-छोटी महत्वहीन घटना या व्यक्ति को भी यदि बार बार रुक रुक कर याद लाते रहेंगे, तो वह जीवन की स्थाई यादगार बन जाएगी. जगत के सभी महापुरुष, घटनाएँ, इतिहास, युद्ध इसीलिए आदमी के स्मरण में रहते हैं क्योंकि आदमी उन्हें किसी न किसी बहाने दुहराता रहता है, उसे यादगार बनाकर उसमें अपनी सुरक्षा राजनैतिक फायदे या जीवन के नमूने (आदर्श) ढूंढता रहता है -अरुण