क्या ही अच्छा हो कि ....



क्या ही अच्छा हो कि हम इस
ध्यानोत्पन्न (well felt) तथ्य को
सतत अपने विचार और
भावना में (with this attitude) रखते हुए जिएँ कि
-    यह शरीर-मस्तिष्क मेरा अपना नहीं है,
मस्तिष्क एवं वातावरण के संयोग से उपजा
मन भी अपना नहीं है, शरीर-मस्तिष्क और मन दोनों ही
केवल उपयोग के वास्ते मिली सौगातें हैं ------
ऐसे attitude के साथ सतत जीने पर,
जीवन में एक बड़ा गुणात्मक बदलाव
हुआ देखने को मिलेगा. शरीर-मस्तिष्क और मन का
बड़ा सम्यक उपयोग होता दिखेगा, अहंकार का बोझ
उतर जाने से मनोविकार पनपने ही न पाएगें
एक स्थाई शांति बनी रहेगी
-अरुण  

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