जिंदगी असली नकली
दबा
है खजाना नीचे भीतर
सच्ची
निर्मल जिंदगी का,
रख्खा
है ऊपर एक पत्थर
वासनाओं
की काल्पनिक जिंदगी का
आदमी
इसी काल्पनिक बस्ती में,
इसी
को सच्ची जिंदगी समझते.
दिन
रात जी रहा है
जिन्हें
असलियत पल पल उजागर है
वे
अपने घर में बैठे, यह काल्पनिक जिंदगी
बिना
किसी तनाव के जी लेते है,
जिन्हें
असली घर का पता नहीं वे
नकली
घर में बैठे नकलीपन की
खिंचावभरी
जिंदगी जी रहे हैं
-अरुण
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