असावधान चित्त और धर्म की सीख
आदमी
का दिमाग
जब
असावधान होता है,
उसे
बार बार सुझाई जा रही बातों को वह
बिना
दिक्कत स्वीकार करता जाता है
जिन
बातों पर उसे गौर करने को कहा जाए
उन्हें
वह सहज स्वीकार नहीं करता
क्योंकि
सावधानी
की अवस्था में जो बताया जाए
वह
उसके विरोध में भी सोच सकता है.
तथा
कथित धार्मिक लोगों के समाज में
सभी
लौकिक धर्म मनुष्य की
असावधानी
का फायदा उठाते,
उसके
भीतर उतार दिए जाते हैं
-अरुण
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