अस्तित्व को हर सांस में महसूस करना ही आस्तिकता



जिस अस्तित्व से, जिस तरह 
फूल खिल रहे हैं,  तारेचमक रहे हैं, मेघ गरज रहे हैं 
पहाड़, नदी आदि  के होने का परिचय मिल रहा है 
उसी अतित्व से, ठीक उसी तरह
'मेरा जीवन भी खिल रहा है, चल रहा है
इस रूप से निकल कर उस रूप में ढल रहा है
- इस तथ्य को जो पल पल,
अपनी हर साँस में महसूस करा रहा हो,
वही आस्तिक है
भले ही वह भगवन को भी मानता हो 
-अरुण 

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