क्षितिज तो अनूठा मिलन नभ धरा का
धरा
सत्य आकाश एक कल्पना सी
क्षितिज
तो अनूठा मिलन नभ धरा का
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यहाँ
साँस जीना मगर आस माया
मनु
से उसीकी लिपटती है छाया
खुले
नैन जिनमे सपन हैं प्रवासी
धरा
सत्य ..........
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उठो
पंख लेकर धरो ध्यान धारा
क्षितिज
से भ्रमों पर भ्रमण हो तुम्हारा
धरो
नित्य अवधान जो साधना सी
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धरा
सत्य आकाश एक कल्पना सी
क्षितिज
तो अनूठा मिलन नभ धरा का
-अरुण
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