बीज में ठहरा हुआ ही .....
बीज
में ठहरा हुआ ही देख पाए
रूप
अपनी टहनियों का
संसार
के फैलाव,
अपनी
वासनाओं के
लहू
और धमनियों का,
पर
उठा जो वृक्ष बन,
जाता
उलझ सब झंझटों में,
कल्पनाओ
में ढली सुख-वेदना, दुख के स्वरों में
और
फिर धुंधली हुई जाती
समझ
इस जिंदगी की
धूलकण
में लिप्त दर्पण में
दिखी
जीवन छबि की
-अरुण
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