शरीर - जन्मे-मरे, मन - जले-बुझे



शरीर ही जन्मता है,
मन तो यहाँ की भौतिक और लौकिक
आबोहवा में ढलता है,...
और मरता भी शरीर ही है ...
मन तो बुझता है
एक बल्ब की तरह
-अरुण

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