भारत में राजनिति की एक सच्चाई



राजनीति में भी व्यावहारिक दांवपेंच बहुत काम आतें हैं. संविधान, नीति और नियमों के दायरे में अपनी नीयत को बिठा दो, बस ... इतना ही काफी है. फिर आपकी नीयत असंवैधानिक ही क्यों न हो, आप या आपका दल और आपकी औपचारिक सोच, संवैधानिक मान ली जाती है.

यह खुला रहस्य है कि भारत में स्वभावतः या मानसिक तौर पर जो लोग या समूह साम्प्रदायिक हैं, उन्हें भी राजनैतिक दल की मान्यता प्राप्त है. इसीतरह जो पार्टियाँ अपने को धर्मनिरपेक्ष कहलाती है, वे भी सांप्रदायिक पक्षपात करने के बावजूद भी स्वयं को धर्मनिरिपेक्ष कहलाकर लोगों का समर्थन जुटातीं हैं.
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नीयत की सच्चाई नियमों से साबित नहीं होती
-अरुण          
 

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