"सुर ना सजे क्या गाऊँ मै?”



इस मूलभूत सत्य को,
कि सृष्टि में न कुछ नया निर्माण होता है और
न ही कुछ नष्ट होता है, यानि
वही सात स्वर बने रहतें है और इन्ही बने रहनेवाले
सात स्वरों से ही संगीत ढलता है या कि कोलाहल पसरता है
--------
आदमी को प्राप्त साधनों और क्षमताओं को ठीक से न जमा पाने के कारण ही उसका जीवन दुष्कर बन गया है. इन्ही साधनों और क्षमताओं को ठीक से जमा लेनेवालों यानि सुरों को ठीक ठीक सजा पानेवालों का जीवन ही संगीतमय या आनंदित बन पाया है
-अरुण

Comments

Popular posts from this blog

मै तो तनहा ही रहा ...

पुस्तकों में दबे मजबूर शब्द

यूँ ही बाँहों में सम्हालो के