संबंधों का दर्पण



बिना संबंधों के जीना आदमी के लिए संभव कहाँ?
कोई संबंधों के दर्पण में स्वयं की खोज जारी रखते हुए
रूपांतरित होते हैं , प्रेम जगाते हैं
तो कोई संबंधों में अपना  निहित स्वार्थ खोजते हुए
मैत्री और दुश्मनी का सिलसिला चालू कर देते हैं
- अरुण
   

Comments

Popular posts from this blog

मै तो तनहा ही रहा ...

यूँ ही बाँहों में सम्हालो के

पुस्तकों में दबे मजबूर शब्द