दर्शन ......जागा या सोया हुआ

काग़ज़ को बहुत बहुत दूर से देखने पर .......  कुछ भी न दिखा
दूरी कम होते ही .......काग़ज़ पर काली खिंची रेखाएँ दिखीं
दूरी और कम होते दिखा............ वे रेखाएँ नही, कोई लिखावट है
नज़र काग़ज़ की लिखावट पर ठहरते ही.... 'पढना' जागा  और 'देखना' सो गया
******************
ऊपर लिखा अनुभव बाहरी एवं भीतरी... दोनों तरह के observations को ध्यान रखकर लिखा गया है।
- अरुण

Comments

Popular posts from this blog

मै तो तनहा ही रहा ...

पुस्तकों में दबे मजबूर शब्द

यूँ ही बाँहों में सम्हालो के