आत्यंतिक आंतरिक क्रांति है निजी मसला

सदियाँ गुज़र चुकी हैं, मगर आदमी वही है.....वही लोभ, क्रोध, अहंकार,संघर्ष और सुखदुख.. सबकुछ वही । केवल बदलता रहा है उसका बाहरी नक़्शा .. उसका रहन सहन, सुख सुविधा, तौर तरीक़े, सामाजिक परिवेश और जीवन मूल्य । कुछ ही लोगों में     आत्यंतिक आंतरिक क्रांति घट पायी है जो पूरी तरह निजी रही । आदमी की भीड़ ऐसी ही निजी क्रांतियों से प्रभावित होते हुए नये नये धर्म इजाद करती है और फिर नये नये बखेड़े खड़े कर देती है ।
- अरुण

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