होश का नाम है..ज़िंदगी
आदमी अपनी अनसुलझी या भ्रमउलझी सोच-समझ की वजह से, जन्म और मृत्यु के बीच के फ़ासले को ही अपनी ज़िंदगी समझ बैठा है । ऐसा वह समझता है.....केवल इसलिए... क्योंकि उसके प्राण ज़िंदा है, देह.. देख-सुन और चलफिर पाती है, दिमाग.. बीते हुए का सहारा पकड़ कर वर्तमान में कुछ हद तक जी लेता है ।....वह होश में होते हुए भी ....उसे यह होश नही है कि वह ख़ुद गुज़रे दिनों के (या मरे दिनों के) अनुभवों का ही निचोड़ है । एक तरह से.. वह मरा मरा ही जी रहा है।
ज़िंदगी उस होश का नाम है जो अपनी बेहोशियों को भी साफ़ साफ़ देख ले ।
- अरुण
ज़िंदगी उस होश का नाम है जो अपनी बेहोशियों को भी साफ़ साफ़ देख ले ।
- अरुण
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