आदमी सिर्फ बटोरता है
किनारों
से गुजरती हुई पहुँच जातीं हैं
नदियाँ
समंदर में बिना समेटे तजुर्बों को
जो
आते रहे,जाते रहे, मिलते रहे बिछुड़ते रहे
हर
पल हर वक्त..... और नदियाँ सिर्फ उठाती रहीं लुफ्त
अपनी
रवानी का ........
परन्तु
आदमी जिस रास्ते से गुजरता है
उस
रास्ते को ही बटोरता चला जाता है
बिना
अपनी गुजरन और रफ़्तार को देखता निहारता
और जब
आखिर हिसाब करने बैठता है
तो
पाता है कि सिवा कंकड़ पत्थर और धूल के
कुछ
भी हासिल न हुआ
-अरुण
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