धर्म है रचना तो धार्मिकता है एक तत्व



‘धार्मिकता’ एक गुण है. इस गुणविशेष को समाज ने धर्म में ढांचे में ढाल दिया है, यह न समझते हुए कि गुण एक निराकार तत्व होने के कारण इसे किसी ढांचे में बाँधा नही जा सकता. इसी ढांचे के अनुकरण के लिए संस्कार रचे गये, संस्कारों से बंधे लोग धार्मिक कहलाए जाते हुए भी धार्मिकता के प्रमाण नही हो सकते
-अरुण   

Comments

Ankur Jain said…
बहुत ही गहरे अर्थों को बताती सुंदर प्रस्तुति।।।

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