दो रुबाई आज के लिए ********************* आत्म-बल का व्यर्थ में गुणगान करता है परमात्म-बल ही सृष्टि का सब काम करता है काम करना शक्ति का ही काम है.. यारों! अपनी कहके उसको... अपना नाम करता है ***************************************** मँझधार से जो भागे, समझे न जीस्ते क़ुदरत ढूँढे जो बस किनारे, डरना ही उसकी फ़ित्रत सपने गुलों के हों तो काँटों से कैसा डरना? जज़्बा-ए-दोस्ती तो काँटों गुलों की इशरत जीस्त =जीवन, फित्रत = स्वभाव, इशरत= आनंद ******************************************* - अरुण